Class 10th NCERT Solutions Hindi Sparsh Bhag 2: Chapter 10 बड़े भाई साहब
Class 10th NCERT Solutions Hindi Sparsh Bhag 2: Chapter 10 बड़े भाई साहब

Class 10: Hindi Sparsh Chapter 10 solutions. Complete Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 Notes.

Class 10th NCERT Solutions Hindi Sparsh Bhag 2: Chapter 10 बड़े भाई साहब

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मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1. कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी?
उत्तर-
कथा नायक की रुचि खेल-कूद, मैदानों की सुखद हरियाली, हवा के हलके-हलके झोंके, फुटबॉल की उछल-कूद, बॉलीबॉल की फुरती और पतंगबाजी, कागज़ की तितलियाँ उड़ाना, चारदीवारी पर चढ़कर नीचे कूदना, फाटक पर सवार होकर उसे आगे-पीछे चलाना आदि कार्यों में थी।

प्रश्न 2. बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?
उत्तर-
बड़े भाई छोटे भाई से हर समय एक ही सवाल पूछते थे-कहाँ थे? उसके बाद वे उसे उपदेश देने लगते थे।

प्रश्न 3. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर-
दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में यह परिवर्तन आया कि वह स्वच्छंद और घमंडी हो गया। वह यह । सोचने लगा कि अब पढ़े या न पढ़े, वह पास तो हो ही जाएगा। वह बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाकर अपना अधिक समय खेलकूद में लगाने लगा।

प्रश्न 4. बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?
उत्तर-
बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में 5 साल बड़े थे। वे नवीं कक्षा में पढ़ते थे।

प्रश्न 5. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
उत्तर-
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कभी कापी पर वे कभी किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों के चित्र बनाते थे। कभी-कभी वे एक शब्द या वाक्य को अनेक बार लिख डालते, कभी एक शेर-शायरी की बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द रचना करते, जो निरर्थक होती, कभी किसी आदमी को चेहरा बनाते।

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लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?
उत्तर-
छोटे भाई ने अधिक मन लगाकर पढ़ने का निश्चय कर टाइम-टेबिल बनाया, जिसमें खेलकूद के लिए कोई स्थान नहीं था। पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय उसने यह सोचा कि टाइम-टेबिल बना लेना एक बात है और बनाए गए टाइम-टेबिल पर अमल करना दूसरी बात है। यह टाइम-टेबिल का पालन न कर पाया, क्योंकि मैदान की हरियाली, फुटबॉल की उछल-कूद, बॉलीबॉल की तेज़ी और फुरती उसे अज्ञात और अनिवार्य रूप से खींच ले जाती और वहाँ जाते ही वह सब कुछ भूल जाता।

प्रश्न 2. एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर-
छोटा भाई दिनभर गुल्ली-डंडा खेलकर बड़े भाई के सामने पहुँचा तो बड़े भाई ने गुस्से में उसे खूब लताड़ा। उसे घमंडी कहा और सर्वनाश होने का डर दिखाया। उसने उसकी सफलता को भी तुक्का बताया और आगे की पढ़ाई का भय दिखलाया।

प्रश्न 3. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?
उत्तर-
बड़े भाई साहब बड़े होने के नाते यही चाहते और कोशिश करते थे कि वे जो कुछ भी करें, वह छोटे भाई के लिए एक उदाहरण का काम करे। उन्हें अपने नैतिक कर्तव्य का वोध था कि स्वयं अनुशासित रह कर ही वे भाई को अनुशासन में रख पाएँगे। इस आदर्श तथा गरिमामयी स्थिति को बनाए रखने के लिए उन्हें अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं।

प्रश्न 4. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों ?
उत्तर-
बड़े भाई साहब छोटे भाई को दिन-रात पढ़ने तथा खेल-कूद में समय न गॅवाने की सलाह देते थे। वे बड़ा होने के कारण उसे राह पर चलाना अपना कर्तव्य समझते थे।

प्रश्न 5. छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर-
छोटे भाई (लेखक) ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का अनुचित फ़ायदा उठाया, जिससे उसकी स्वच्छंदता बढ़ गई और उसने पढ़ना-लिखना बंद कर दिया। उसके मन में यह भावना बलवती हो गई कि वह पढ़े या न पढ़े परीक्षा में पास अवश्य हो जाएगा। इतना ही नहीं, उसने अपना सारा समय पतंगबाज़ी को ही भेंट कर दिया।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर-
मेरे विचार में यह सच है कि अगर बड़े भाई की डाँट-फटकार छोटे भाई को न मिलती, तो वह कक्षा में कभी भी अव्वल नहीं आता। यद्यपि उसने बड़े भाई की नसीहत तथा लताड़ से कभी कोई सीख ग्रहण नहीं की, परंतु उसपर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव गहरा पड़ता था, क्योंकि छोटा भाई तो खे-प्रवृत्ति का था। बड़े भाई की डाँट-फटकार की ही भूमिका ने उसे कक्षा में प्रथम आने में सहायता की तथा उसकी चंचलता पर नियंत्रण रखा। मेरे विचार से बड़े भाई की डाँट-फटकार के कारण ही छोटा भाई कक्षा में अव्वल अता था अर्थात् बड़े भाई की डाँट-फटकार उसके लिए वरदान सिद्ध हुई।

प्रश्न 2. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?
उत्तर-
एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उन्होंने रौद्र रूप धारण कर पूछा, “कहाँ थे? लेखक को मौन देखकर उन्होंने लताड़ते हुए घमंड पैदा होने तथा आगामी परीक्षा में फेल होने का भय दिखाया।

प्रश्न 3. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?
उत्तर-
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव रूपी ज्ञान से आती है, जोकि जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उनके अनुसार पुस्तकीय ज्ञान से हर कक्षा पास करके अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है, लेकिन यह पुस्तकीय ज्ञान अनुभव में उतारे बिना अधूरा है। दुनिया को देखने, परखने तथा बुजुर्गों के जीवन से हमें अनुभव रूपी ज्ञान को प्राप्त करना आवश्यक है, क्योंकि यह ज्ञान हर विपरीत परिस्थिति में भी समस्या का समाधान करने से सहायक होता है। इसलिए उनके अनुसार अनुभव पढ़ाई से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, जिससे जीवन को परखा और सँवारा जाता है तथा जीवन को समझने की समझ आती है।

प्रश्न 4. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
उत्तर-
बड़े भाई साहब छोटे भाई को-

  • खेलकूद में समय न गॅवाकर पढ़ने की सलाह देते थे।
  • अभिमान न करने की सीख देते थे।
  • अपनी बात मानने की सलाह देते थे।

वे बड़ा होने के कारण ऐसा करना अपना कर्तव्य समझते थे।

प्रश्न 5. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?
उत्तर-
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. बड़ा भाई बड़ा ही परिश्रमी था। वह दिन-रात पढ़ाई में ही जुटा रहता था इसलिए खेल-कूद, क्रिकेट मैच आदि में उसकी कोई रुचि नहीं थी।
  2. वह बार-बार फेल होने के बावजूद पढ़ाई में लीन रहता था।
  3. बड़ा भाई उपदेश की कला में बहुत माहिर है इसलिए वह अपने छोटे भाई को उपदेश ही देता रहता है, क्योंकि वह अपने छोटे भाई को एक नेक इंसान बनाना चाहता है।
  4. वह अनुशासनप्रिय है, सिद्धांतप्रिय है, आत्मनियंत्रण करना जानता है। वह आदर्शवादी बनकर छोटे भाई के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता है।
  5. बड़ा भाई अपने छोटे भाई से पाँच साल बड़ा है इसलिए वह अपने अनुभव रूपी ज्ञान को छोटे भाई को भी देता है।

प्रश्न 6. बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है?
उत्तर-
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। उनका मत था कि किताबी ज्ञान तो रट्टा मारने का नाम है। उसमें ऐसी-ऐसी बातें हैं जिनका जीवन से कुछ लेना-देना नहीं। इससे बुधि का विकास और जीवन की सही समझ विकसित नहीं हो पाती है। इसके विपरीत अनुभव से जीवन की सही समझ विकसित होती है। इसी अनुभव से जीवन के सुख-दुख से सरलता से पार पाया जाता है। घर का खर्च चलाना हो घर के प्रबंध करने हो या बीमारी का संकट हो, वहीं उम्र और अनुभव ही इनमें व्यक्ति की मदद करते हैं।

प्रश्न 7. बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि-

  1. छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
  2. भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
  3. भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
  4. भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

उत्तर-
1. छोटे भाई का मानना है कि बड़े भाई को उसे डाँटने-डपटने का पूरा अधिकार है क्योंकि वे उससे बड़े हैं। छोटे भाई की शालीनता व सभ्यता इसी में थी कि वह उनके आदेश को कानून की तरह माने अर्थात् पूरी सावधानी व सर्तकता से उनकी बात का पालन करे।

2. भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि मुझे जीवन का तुमसे अधिक अनुभव है। समझ किताबी ज्ञान से नहीं आती अपितु दुनिया के अनुभव से आती है। जिस प्रकार अम्मा व दादा पढ़े लिखे नहीं है, फिर भी उन्हें संसार का अनुभव हम से अधिक है। बड़े भाई ने कहा कि यदि मैं आज अस्वस्थ हो जाऊँ, तो तुम भली प्रकार मेरी देख-रेख नहीं कर सकते। यदि दादा हों, तो वे स्थिति को सँभाल लेंगे। तुम अपने हेडमास्टर को देखो, उनके पास अनेक डिग्रियाँ हैं। उनके घर का इंतजाम उनकी बूढ़ी माँ करती हैं। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव था।

3. भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि मैं तुमको पतंग उड़ान की मनाहीं नहीं करता। सच तो यह कि पतंग उड़ाने की मेरी भी इच्छा होती है। बड़े भाई साहब बड़े होने के नाते अपनी भावनाओं को दवा जाते हैं। एक दिन भाई साहब के ऊपर से पतंग गुजरी, भाई साहब ने अपनी लंबाई का लाभ उठाया। वे उछलकर पतंग की डोर पकड़कर हॉस्टल की ओर दौड़कर आ रहे थे, छोटा भाई भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहा था। इन सभी बातों से यह सिद्ध होता है कि बड़े भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है, जो अनुकूल वातावरण पाकर उभर उठता है।

4. बड़े भाई साहब द्वारा छोटे भाई को यह समझाना कि किताबी ज्ञान होना एक बात है और जीवन का अनुभव दूसरी बात। तुम पढ़ाई में परीक्षा पास करके मेरे पास आ गए हो, लेकिन यह याद रखो कि मैं तुमसे बड़ा हूँ और तुम मुझसे छोटे हो। मैं तुम्हें गलत रास्ते पर रखने के लिए थप्पड़ का डर दिखा सकता हूँ या थप्पड़ मार भी सकता हूँ अर्थात् तुम्हें डाँटने का हक मुझे है।

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(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।
उत्तर-
इस पंक्ति का आशय है कि इम्तिहान में पास हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि इम्तिहान तो रटकर भी पास किया जा सकता है। केवल इम्तिहान पास करने से जीवन का अनुभव प्राप्त नहीं होता और बिना अनुभव के बुधि का विकास नहीं होता। वास्तविक ज्ञान तो बुधि का विकास है, जिससे व्यक्ति जीवन को सार्थक बना सकता है।

प्रश्न 2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार न कर सकता था।
उत्तर-
लेखक खेल-कूद, सैर-सपाटे और मटरगश्ती का बड़ा प्रेमी था। उसका बड़ा भाई इन सब बातों के लिए उसे खूब डाँटता-डपटता था। उसे घुड़कियाँ देता था, तिरस्कार करता था। परंतु फिर भी वह खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था। वह खेलों पर जान छिड़कता था। जिस प्रकार विविध संकटों में फँसकर भी मनुष्य मोहमाया में बँधा रहता है, उसी प्रकार लेखक डाँट-फटकार सहकर भी खेल-कूद के आकर्षण से बँधा रहता था।

प्रश्न 3. बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने ?
उत्तर-
इस पंक्ति का आशय है कि जिस प्रकार मकान को मजबूत तथा टिकाऊ बनाने के लिए उसकी नींव को गहरा तथा ठोस बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार से जीवन की नींव को मजबूत बनाने के लिए शिक्षा रूपी भवन की नींव भी बहुत मज़बूत होनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना जीवन रूपी मकान पायदार नहीं बन सकता।

प्रश्न 4. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो बंद राति से आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्करण ग्रहण करने जा रही हो।
उत्तर-
लेखक पतंग लूटने के लिए आकाश की ओर देखता हुआ दौड़ा जा रहा था। उसकी आँखें आकाश में उड़ने वाली पतंग रूपी यात्री की ओर थीं। अर्थात् उसे पतंग आकाश में उड़ने वाली दिव्य आत्मा जैसी मनोरम प्रतीत हो रही थी। वह आत्मा मानो मंद गति से झूमती हुई नीचे की ओर आ रही थी। आशय यह है कि कटी हुई पतंग धीरे-धीरे धरती की ओर गिर रही थी। लेखक को कटी पतंग इतनी अच्छी लग रही थी मानो वह कोई आत्मा हो जो स्वर्ग से मिल कर आई हो और बड़े भारी मन से किसी दूसरे के हाथों में आने के लिए धरती पर उतर रही हो।

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भाषा अध्ययन

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब

उत्तर
शब्द – पर्यायवाच
नसीहत – शिक्षा, सीख, उपदेश, सबक
रोष – क्रोध, गुस्सा, क्षोभ
आज़ादी – स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, स्वाधीनता, मुक्ति
राजा – नृप, महीप, नरेश, प्रजापालके
ताज्जुब – आश्चर्य, विस्मय, हैरानी

प्रश्न 2. प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए-

  • मेरो जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था।
  • भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती। बड़े भाई साहब
  • वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फजीहत का अवसर मिल जाता।

निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरागैरा नत्थू-खैरा।
उत्तर-
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब Q2

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब Q3
तालीम, जल्दबाज़ी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ़, सूक्ति-बाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशी, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रात:काल, विद्वान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब Q3.1

प्रश्न 4.
क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक
सकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला ने सेब खाया।
मोहन पानी पी रहा है।
अकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला हँसती है।
बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्यों में कौन-सी क्रिया है- सकर्मक या अकर्मक? लिखिए-

  1. उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया।
  2. फिर चोरों-सी जीवन कटने लगा।
  3. शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा।
  4. मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।
  5. समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।
  6. मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।

उत्तर-

  1. सकर्मक
  2. सकर्मक
  3. सकर्मक
  4. सकर्मक
  5. सकर्मक
  6. अकर्मक

प्रश्न 5.
‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए-
विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार

उत्तर-
विचार – वैचारिक
नीति – नैतिक
इतिहास – ऐतिहासिक
प्रयोग – प्रायोगिक
संसार – सांसारिक
अधिकार – आधिकारिक
दिन – दैनिक

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योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।
उत्तर-
‘मानसरोवर’ के आठ भागों में लगभग तीन सौ कहानियाँ संकलित हैं। मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित इन कहानियों में ‘नमक का दारोगा’, ‘ईदगाह’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘अलगोझा’, ‘पूस की रात’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘गिल्ली-डंडा’ आदि हैं। छात्र इन्हें पढ़े और इनका मंचन स्वयं करें।

प्रश्न 2. शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर-
छात्र परिचर्चा का आयोजन स्वयं करें।

प्रश्न 3. क्या पढ़ाई और खेलकूद साथ-साथ चल सकते हैं-कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए।
उत्तर-
छात्र वाद-विवाद कार्यक्रम का आयोजन करें।

प्रश्न 4. क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
छात्र उक्त विषय पर कक्षा में चर्चा करें।

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परियोजना कार्य

प्रश्न 1. कहानी में जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है। अपने माता-पिता बड़े भाई-बहिनों या अन्य बुजुर्ग/बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया-समझदारी/पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई?
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2. आपकी छोटी बहिन/छोटा भाई छात्रावास में रहती/रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए।
उत्तर-
A75/3
आशीर्वाद अपार्टमेंट
सेक्टर 18, रोहिणी
दिल्ली।
10 जनवरी, 20XX
प्रिय अनुज विकास

शुभाशीष !

हम सभी घर पर सकुशल रहकर आशा करते हैं कि तुम भी छात्रावास में सकुशल रहकर पढ़ाई कर रहे होगे। विकास, दिसंबर माह में हुए तुम्हारे प्रश्नपत्रों के अंकों को देखने से पता चला कि तुम्हें अभी कुछ विषयों में विशेष रूप से मेहनत करने की आवश्यकता है। तुमने नवीं कक्षा में 92% अंक जो प्राप्त किए थे वहाँ तक पहुँचने के लिए अभी बहुत मेहनत करना है। हाँ एक बात पर विशेष ध्यान देना, गणित, विज्ञान, अंग्रेज़ी आदि तो रटने के विषय हैं ही नहीं। इन्हें रटने के बजाय समझने और अभ्यास द्वारा इनकी समझ बढ़ाने का प्रयास करना। रटा हुआ तथ्य बहुत जल्दी भूल जाता। है। देखा गया है कि रट्टू बच्चों का ग्रेड कभी अच्छा नहीं होता है।

एक बात और कि पढ़ाई के चक्कर में स्वास्थ्य की उपेक्षा मत करना। स्वास्थ्य ठीक रखने और प्रसन्नचित्त रहने का सर्वोत्तम उपाय खेल और व्यायाम हैं। समय पर पढ़ना और समय पर व्यायाम करना। उससे पढ़ाई की थकान और तनाव दूर होगा, स्फूर्ति बढ़ेगी मन प्रसन्न होगा तथा हर काम में मन लगेगा।
अंत में अपनी पढ़ाई और स्वास्थ्य पर ध्यान देना। अपने आसपास साफ़-सुथरा रखना। शेष सब ठीक है।

तुम्हारा बड़ा भाई
आकाश

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक अपने बड़े भाई के हुक को कानून समझने में शालीनता समझता था, ऐसा क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक और उसके भाई साहब छात्रावास में रहकर पढ़ाई करते थे। लेखक अपने बड़े भाई से उम्र में पाँच वर्ष छोटा था। वह नौ साल का और भाई साहब चौदह वर्ष के। उम्र और अनुभव के इस अंतर के कारण उन्हें लेखक की देखभाल और डाँट-डपट का पूरा अधिकार था और उनकी बातें मानने में ही लेखक की शालीनता थी।

प्रश्न 2. बड़े भाई महत्त्व की विधियाँ देखकर लेखक किस पहेली का हल नहीं निकाल सका और क्यों?
उत्तर-
लेखक ने देखा कि बड़े भाई साहब ने अपनी पुस्तकों और कापियों के पृष्ठों और हासिये पर जानवरों की तसवीरें बना रखी हैं या ऐसे-ऐसे शब्दों का निरर्थक मेल करने का प्रयास किया है जिनसे किसी अर्थ की अभिव्यक्ति नहीं होती है। लाख चेष्टा करने पर कुछ समझ न पाने के कारण लेखक के लिए यह अबूझ पहेली बनी रही। वह उम्र में छोटा होने से बड़े भाई की पहेलियों का हल कैसे ढूँढ़ सकता था।

प्रश्न 3. शिक्षा जैसे महत्त्वपूण मसले पर बड़े भाई साहब के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भाई साहब शिक्षा को जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानते थे। ऐसे महत्त्वपूर्ण मामलों में वे जल्दबाजी करने के पक्षधर न थे। उनका मानना था कि जिस प्रकार एक मजबूत मकान बनाने के लिए मजबूत नींव की जरूरत होती है उसी प्रकार शिक्षा की नींव मजबूत बनाने के लिए वे एक-एक कक्षा में दो-दो, तीन साल लगाते थे।

प्रश्न 4. लेखक को अपने वार्ड के रौद्र रूप के दर्शन क्यों हो जाया करते थे?
उत्तर-
लेखक का मन पढ़ाई के बजाए खेलकूद में अधिक लगता था। वह घंटा भर भी पढ़ाई के लिए न बैठता और मौका पाते ही होस्टल से निकलकर मैदान में आ जाता। वह तरह-तरह के खेल खेलते हुए, दोस्तों के साथ बातें करते हुए समय। बिताया करता था। उसका ऐसा करना और पढ़ाई से दूरी भाई साहब को पसंद न था। वह जब भी खेलकर घर आता, तब उसे उनके रौद्र रूप के दर्शन हो जाया करते थे।

प्रश्न 5. खेल में लौटे १ई साब लेखक का साइत किस तरह करते थे?
उत्तर-
लेखक जब भी खेलकर घर लौटता तो गुस्साए भाई साहब उससे पहला सवाल यही करते, “कहाँ थे”? हर बार इसी प्रकार के प्रश्न का उत्तर लेखक भी चुप रहकर दिया था। वह अपने द्वारा बाहर खेलने की बात कह नहीं पाता। लेखक की यह चुप्पी कहती थी कि उसे अपना अपराध स्वीकार है। ऐसे में भाई साहब स्नेह और रोष भरे शब्दों में उसका स्वागत करते।

प्रश्न 6. अंग्रेजी विषय के बारे में भाई व लेखक को क्या बताते थे? ऐसा कहने के पीछे भाई साहब का उद्देश्य क्या था
उत्तर-
बड़े भाई साहब लेखक के सामने अंग्रेजी की कठिनता का भयावह चित्र खींचते हुए कहते, ”इस तरह अंग्रेज़ी पढ़ोगे तो जिंदगी भर पढ़ते रहोगे और एक हर्फ़ न आएगा। अंग्रेजी पढ़ना कोई हँसी-खेल नहीं है, जिसे हर कोई पढ़ ले। इसके लिए दिन-रात एक करना पड़ता है। इतने परिश्रम के बाद भी इसे शुद्ध रूप से पढ़ा और बोला नहीं जा सकता।” ऐसा कहने के पीछे भाई साहब का उद्देश्य यही था कि लेखक अधिकाधिक पढ़ाई पर ध्यान दे।

प्रश्न 7. ‘मुझे देखकर भी सबक नहीं लेते’-ऐसा कहकर भाई साहब लेखक को क्या बताना चाहते थे?
उत्तर-
लेखक के बड़े भाई साहब पढ़ाई के नाम पर किताबें रटने का प्रयास करते वे रटकर परीक्षा पास करने का प्रयास करते। वे ऐसा करने के क्रम में अकसर किताबें खोले रहते और खेलकूद, मेले-तमाशे छोड़कर पढ़ते रहते थे, फिर भी परीक्षा में फेल हो गए। वे अपने उदाहरण द्वारा यह बताना चाहते थे कि यदि इतना पढ़कर भी मैं फेल हो गया तो तुम सोचो खेलने में समय गंवाने वाले तुम्हारा क्या हाल होगा।

प्रश्न 8. डाँट-फटकार लगाते भाई साहब लेखक को क्या-क्या सलाह दे डालते थे? उनके ऐसे व्यवहार को आप कितना उचित समझते हैं?
उत्तर-
पढ़ाई छोड़कर खेलकूद में समय गंवाकर लौटे लेखक को भाई-साहब खूब डाँटते-फटकारते और यह सलाह भी दे देते कि जब मैं एक दरजे में दो-तीन साल लगाता हूँ तो तुम उम्र भर एक ही दरजे में पड़े सड़ते रहोगे। इससे बेहतर है कि तुम घर जाकर गुल्ली-डंडा खेलो और दादा की गाढ़ी कमाई के पैसे बरबाद न करो। उनके इस व्यवहार को मैं उचित नहीं मानता, क्योंकि उनके विचारों में नकारात्मकता झलकती है।

प्रश्न 9. भाई साहब द्वारा लताड़े जाने के बाद लेखक जो टाइम-टेबिल बनाता, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भाई साहब द्वारा लताड़े जाने के बाद लेखक जो टाइम-टेबिल बनाता था उसमें खेल के लिए जगह नहीं होती। इस टाइम-टेबिल में प्रातः छह से आठ तक अंग्रेज़ी, आठ से नौ तक हिसाब, साढ़े नौ तक भूगोल फिर भोजन और स्कूल के बाद चार से पाँच तक भूगोल, पाँच से छह तक ग्रामर, छह से सात तक अंग्रेजी कंपोजीशन आठ से नौ अनुवाद नौ से दस तक हिंदी और दस से ग्यारह विविध विषय, फिर विश्राम।

प्रश्न 10. लेखक अपने ही बनाए टाइम-टेबिल पर अमल क्यों नहीं कर पाता था?
उत्तर-
लेखक का मन पढ़ाई से अधिक खेलकूद में लगता था। वह पढ़ने का निश्चय करके भले ही टाइम-टेबिल बना लेता पर इस टाइम-टेबिल पर अमल करने की जगह उसकी अवहेलना शुरू हो जाती। मैदान की सुखद हरियाली, हवा के झोंके, खेलकूद की मस्ती और उल्लास, कबड्डी के दाँव-पेंच और बॉलीबाल की फुरती उसे खींच ले जाती, ऐसे में उसे टाइम टेबिल और किताबों की याद नहीं रह जाती थी।

प्रश्न 11. बड़े भाई साहब ने लेखक का घमंड दूर करने के लिए क्या उपाय अपनाया?
उत्तर-
बड़े भाई साहब ने देखा कि उनके फेल होने और खुद के पास होने से लेखक के मन में घमंड हो गया है। उसका घमंड दूर करने के लिए उसने रावण का उदाहरण देते हुए कहा कि रावण चक्रवर्ती राजा था, जिसे संसार के अन्य राजा कर देते थे। बड़े-बड़े देवता भी उसकी गुलामी करते थे। आग और पानी के देवता भी उसके दास थे पर घमंड ने उसका भी नाश कर दिया।

प्रश्न 12. परीक्षकों के संबंध में भाई साहब के विचार कैसे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
परीक्षकों के संबंध में भाई साहब के विचार बहुत अच्छे नहीं थे। भाई साहब का कहना था कि परीक्षक इतने निर्दयी होते थे कि जामेट्री में अ ज ब लिखने की जगह अ ब ज लिखते ही अंक काटकर छात्रों का खून कर देते थे, वह भी इतनी सी व्यर्थ की बात के लिए। इन परीक्षकों को छात्रों पर दया नहीं आती थी।

प्रश्न 13. फेल होने पर भी भाई साहब किस आधार पर अपना बड़प्पन बनाए हुए थे?
उत्तर-
वार्षिक परीक्षा में फेल होने के कारणों में भाई साहब परीक्षकों का दृष्टिकोण, विषयों की कठिनता और अपनी कक्षा की पढ़ाई की कठिनता का हवाला देकर लेखक को कह रहे थे कि लाख फेल हो गया हूँ, लेकिन तुमसे बड़ा हूँ, संसार का मुझे तुमसे ज्यादा अनुभव है। वे उम्र में बड़े और अधिक अनुभवी होने के आधार पर अपना बड़प्पन बनाए रखना चाहते

प्रश्न 14. भाई साहब ने अपने दरजे की पढ़ाई का जो चित्र खींचा था उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
भाई साहब ने अपने दरजे की पढ़ाई को अत्यंत कठिन बताते हुए उसका जो भयंकर चित्र खींचा था, उससे लेखक भयभीत हो गया। लेखक को इस बात के लिए खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि वह स्कूल छोड़कर घर क्यों नहीं भागा। इतने के बाद भी उसकी खेलों में रुचि और पुस्तकों में अरुचि यथावत बनी रही। वह अब कक्षा में अपमानित होने से बचने के लिए अपने टस्क पूरे करने लगा।

प्रश्न 15. भाई साहब भी कनकौए उड़ाना चाहते थे पर किस भावना के कारण वे चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रहे थे?
उत्तर-
भाई साहब के अंदर भी बचपना छिपा था। इस बचपने को वे बलपूर्वक दबाकर अपनी बालसुलभ इच्छाओं का गला घोटे जा रहे थे। वे खेलने-कूदने और पतंग उड़ाने जैसा कार्य करना चाहते थे, परंतु कर्तव्य और बड़प्पन की भावना के कारण वे ऐसा नहीं कर पा रहे थे। यदि वे स्वयं खेलकूद में लग जाते तो लेखक को पढ़ने के लिए कैसे प्रेरित करते।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. भाई साहब के फेल होने और खुद के अव्वल आने पर लेखक के मन में क्या-क्या विचार आए?
उत्तर-
वार्षिक परीक्षा का जब परिणाम आया तो दिन-रात किताबें खोलकर बैठे रहने वाले भाई साहब फेल हो गए और उनका छोटा भाई (लेखक) जिसका सारा समय खेलकूद को भेंट होता था और बहुत डाँट-डपट खाने के बाद थोड़ी-सी पढ़ाई कर लेता था, परीक्षा में अव्वल आ गया। लेखक जब भी बाहर से खेलकर आता तो भाई साहब रौद्र रूप धारण कर सूक्तिबाणों से उसका स्वागत करते और जी भरकर लताड़ते। अब उनके फेल होने पर लेखक के मन में यह विचार आया क्यों न वह भाई साहब को आड़े हाथों ले और पूछे कि कहाँ गई वह आपकी घोर तपस्या? मुझे देखिए, मजे से खेलता भी रहा और दरजे में अव्वल भी हूँ, पर भाई साहब की उदासी और दुख देखकर उनके घावों पर नमक छिड़कने की हिम्मत लेखक को न हुई।

प्रश्न 2. भाई साहब भले ही फेल होकर एक कक्षा में दो-तीन साल लगाते थे पर उनकी सहज बुधि बड़ी तेज़ थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भाई साहब पढ़ाई के प्रति घोर परिश्रम करते थे, परंतु एक-एक कक्षा में दो-दो या तीन-तीन साल लगाते थे। इसके बाद भी उनकी सहज बुद्धि बड़ी तेज़ थी। भाई साहब के फेल होने और छोटे भाई के पास होने से उसमें अभिमान की भावना बलवती हो गई। वह आज़ादी से खेलकूद में शामिल होने लगा। वह भाई साहब को मौखिक जवाब तो नहीं दे सकता था पर उसके रंग-ढंग से यह जाहिर होने लगा कि छोटा भाई अब भाई साहब के प्रति वैसी अदब नहीं रखता जैसी वह पहले रखा करता था। भाई की सहज बुद्धि ने बिना कुछ कहे-सुने इसे भाँप लिया और एक दिन जब वह खेलकर लौटा तो भाई साहब ने उसे उपदेशात्मक भाषा में खूब खरी-खोटी सुनाई । इससे स्पष्ट होता है कि भाई साहब की सहज बुद्धि अत्यंत तीव्र थी।

प्रश्न 3. बड़े भाई साहब ने तत्कालीन शिक्षा प्रणाली की जिन कमियों की ओर संकेत करते हुए अपने फेल होने के लिए उसे उत्तरदायी ठहराने की कोशिश की है, उससे आप कितना सहमत हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
बड़े भाई साहब ने उस समय की शिक्षा प्रणाली में जिन कमियों की ओर संकेत किया है उनमें मुख्य हैं-एक ही परीक्षा द्वारा छात्रों का मूल्यांकन अर्थात् वार्षिक परीक्षा के परिणाम पर ही छात्रों का भविष्य निर्भर करता था। इस प्रणाली से रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता था। इसमें छात्रों के अन्य पहलुओं के मूल्यांकन की न तो व्यवस्था थी और न उन्हें महत्त्व दिया जाता था। इसके अलावा परीक्षकों का दृष्टिकोण भी कुछ ऐसा था कि वे छात्रों से उस तरह के उत्तर की अपेक्षा करते थे जैसा पुस्तक में लिखा है। किताब से उत्तर अलग होते ही शून्य अंक मिल जाते थे। यद्यपि इन कारणों से ही भाई साहब अपने फेल होने का दोष परीक्षा प्रणाली पर नहीं डाल सकते हैं। वे खुद भी तो समझकर पढ़ने के बजाय रटकर पढ़ते थे जो उनके फेल होने का कारण बनी। इस तरह भाई साहब के विचारों से मैं सहमत नहीं हूँ। पास होने के लिए उन्हें विषयों को समझकर पढ़ने की जरूरत होती है जो उन्होंने नहीं किया।

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